सुबह साइट पर निरीक्षण के दौरान ड्यूटी कर रहे थे राकेश कुमार, सीनियर सेक्शन इंजीनियर।
अचानक वहीं गिर पड़े।
सहकर्मी अस्पताल लेकर दौड़े, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
यह रिपोर्ट उपलब्ध स्रोतों और सहकर्मियों की जानकारी पर आधारित है। आधिकारिक जाँच के बाद ही अंतिम सच सामने आएगा।

सरकारी रिपोर्ट कहेगी—दिल का दौरा।
लेकिन सहकर्मी दबे जुबान बताते हैं—
“साहब, असली वजह दिल का दौरा नहीं, बल्कि तनाव और दबाव था।”

कल रात प्रिंसिपल चीफ इंजीनियर नीलमणि छपरा जंक्शन आए थे इंस्पेक्शन करने।
देर रात तक फाइलों की जांच चली।
सहकर्मी कहते हैं—राकेश कुमार को डांटा गया, फटकारा गया।
पूरी रात परेशान रहे।

आज सुबह जब साइट पर निरीक्षण कर रहे थे,
तो उसी दौरान गिर पड़े।
लेकिन अफ़सोस देखिए—
जिन बड़े बाबू के इंस्पेक्शन का दबाव था,
वो अस्पताल जाने के बजाय सीधे ट्रेन पकड़कर लौट गए।
यानी कागज़ और रिपोर्ट बच गई,
लेकिन एक इंसान की ज़िंदगी खत्म हो गई।

राकेश कुमार का घर नवादा जिले के हिल्सा में है।
घर पर इंतज़ार कर रहे हैं तीन बच्चे—दो बेटे और एक बेटी।
लेकिन पापा की जगह आज घर पहुँची उनकी मौत की खबर।
आज की यह घटना सिर्फ़ एक मौत नहीं है।
यह उस सिस्टम का आईना है—
जहां अफसर की कुर्सी भारी है
और इंसान की ज़िंदगी हल्की।

आज छपरा जंक्शन स्तब्ध है,
रेलवे परिवार शोक में है,
और यह मौत पूरे रेलवे तंत्र को हिला कर रख गई है।


