छपरा का हाल देखिए…
चारों तरफ ऊँची-ऊँची बिल्डिंग्स, करोड़ों का इन्वेस्टमेंट,
हजारों करोड़ झोंके जा चुके हैं हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में।
बाहर से देखिए तो लगता है मानो मिनी-दिल्ली हो,
पर अंदर मरीज पूछते हैं—”इलाज मिलेगा या फिर रेफर कर देंगे?”

अब नई खबर ये है कि छपरा सदर अस्पताल में
23 करोड़ की लागत से 50 बेड वाला क्रिटिकल केयर यूनिट (CCU) बनने जा रहा है।

बड़े-बड़े वादे हैं—
- वेंटिलेटर,
- डिफाइब्रिलेटर,
- मॉनिटर,
4.ऑक्सीजन सपोर्ट,
और 24 घंटे डॉक्टर + पैरामेडिकल स्टाफ।

मतलब हृदय रोग, स्ट्रोक, बड़े ऑपरेशन के बाद की दिक्कत,
या ट्रॉमा केस— सबका इलाज अब यहीं छपरा में!
बात सुनने में शानदार है…
लोगों को अब पटना, IGIMS या AIIMS के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।

लेकिन असली सवाल यहीं से शुरू होता है:
इतने इन्वेस्टमेंट के बावजूद,
क्यों छोटे-से-छोटे केस में भी मरीजों को रेफर कर दिया जाता है पटना?
क्या इमारतें और मशीनें ही इलाज करती हैं?
या फिर ईमानदारी और समर्पण से काम करने वाले डॉक्टर?
बिल्डिंग बनी तो क्या हुआ, अगर भरोसा न बन सका,
क्रिटिकल यूनिट सज गई, पर मरीज फिर भी पटना भागा।”
हकीकत ये है—
प्रति 100 लोगों पर एक अच्छे डॉक्टर की जरूरत है,
सिर्फ मशीनें काफी नहीं।
अगर डॉक्टरों की टीम सही से ड्यूटी करे,
तो मरीज छपरा छोड़कर पटना नहीं भागेगा।
सिविल सर्जन का दावा है कि ये यूनिट
“विश्वस्तरीय गहन चिकित्सा सुविधा” देगा।
पर छपरा की जनता पूछ रही है
“विश्वस्तरीय सुविधा सिर्फ कागज पर रहेगी,
या सच में गरीब मरीज को मुफ्त में जीवनदान भी मिलेगा?”

तो कहानी का निष्कर्ष ये कि
23 करोड़ का CCU छपरा के लिए बड़ी सौगात है।
पर असली इम्तिहान तब होगा,
जब अस्पताल की ये चमक-दमक
मरीजों के लिए मौत और जिंदगी के बीच की दीवार तोड़ेगी।
“न मशीनें काम आएंगी, न बिल्डिंगों का शोर,
इलाज वही कहलाएगा—जहाँ मरीज को मिले सुकून और डॉक्टर का गौर।”


