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गड़खा थाना क्षेत्र के सोहो सराय गाँव का 48 वर्षीय बुनीलाल माँझी अब नहीं रहा।
सुबह-सुबह नदी किनारे गया था — हाथ-मुँह धोने।
पाँव फिसला और नदी में डूब गया।
गाँव के लोग दौड़े, लेकिन ज़िंदगी बचाई नहीं जा सकी।
बुनीलाल अपने पीछे दो छोटे-छोटे बच्चों को छोड़ गया। अब उनका पालन-पोषण कैसे होगा? यह सिर्फ़ परिवार का दर्द नहीं है, यह सरकार से भी सवाल है।

सरकार दावा करती है — “हर घर शौचालय।”
विज्ञापनों में तस्वीरें हैं, आँकड़े हैं, और हक़ीक़त यह है कि सोहो सराय के लोग अब भी नदी और खेतों की तरफ़ जाने को मजबूर हैं।

अगर घर में शौचालय होता, तो क्या बुनीलाल को नदी किनारे जाने की ज़रूरत पड़ती?
क्या आज वह ज़िंदा होता?

यह मौत सिर्फ़ एक हादसा नहीं है।
यह मौत उन झूठे दावों की गवाही है जो ज़मीनी सच्चाई से मेल नहीं खाते।
यह मौत बताती है कि विकास की तस्वीरें चमकती हैं, लेकिन गाँव की ज़िंदगी अँधेरे में डूब जाती है।

समाचार लिखे जाने तक शव का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था।

सोहो सराय का यह हादसा हमें याद दिलाता है कि आँकड़ों से नहीं, ज़मीनी हक़ीक़त से विकास को परखना होगा।

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