स्नान करने गए… लौटकर चार जनाजे आए।
सारण जिले के गड़खा थाना क्षेत्र से आई यह खबर सिर्फ़ एक हादसा नहीं है, बल्कि एक चीख़ है… एक चीत्कार है।

गर्मी और उमस से परेशान चार बच्चे, एक परिवार के दो भाई और उसी गांव के दो और मासूम… स्नान करने पोखर की ओर चले गए। मां-बाप को यह यक़ीन था कि उनके बच्चे खेल-खिलखिला कर घर लौट आएंगे… लेकिन लौटकर आई सिर्फ़ चीख़ें, सिर्फ़ सन्नाटा।

फुर्सतपुर चंवर का पोखर… जहां कभी बच्चों की हंसी गूँजती थी, आज वहां मातम पसरा है।

मृतकों में दरोगा सिंह का 14 वर्षीय आशीष, मंशी लाल सिंह का 11 वर्षीय मुन्ना और मैनेजर सिंह के दो बेटे—अंकुश और कृष्णा… शामिल हैं।

एक पिता के दो पुत्र, एक मां के दो पुत्र… और पूरे गांव के चार बेटे… पोखर की गहराई ने उन्हें निगल लिया।

थानाध्यक्ष शशि रंजन कुमार, सीओ नीली यादव, गोताखोरों और पुलिस बल ने घंटों की मशक्कत के बाद चारों शव पोखर से बाहर निकाले।

लेकिन सवाल यह है… बाहर आया क्या?
शव या फिर टूटे हुए सपने?
बाहर आई देह या फिर उजड़ गया पूरा परिवार?

मां दुर्गा की भक्ति का महीना है… दशहरा का उल्लास है… हर गली-मोहल्ला पूजा की तैयारी में डूबा हुआ है… लेकिन इसी बीच यह परिवार अपने चार बच्चों की लाशों को देख कर बेसुध पड़ा है।
उनके घर की आरती की थाली अब आंसुओं से भीग चुकी है।
गांव की गलियों में सिर्फ़ एक ही स्वर है—
“हे भगवान, यह हमने क्या देखा?”
रुदन-क्रंदन से पूरा माहौल गमगीन है।

पोस्टमार्टम की प्रक्रिया जारी है, कागज़ी कार्रवाई भी होगी… लेकिन इस गांव के दिल पर पड़े ज़ख़्म का कौन इलाज करेगा?
यह हादसा सिर्फ़ चार बच्चों की मौत नहीं है…
यह उस देश की तस्वीर है, जहां पोखर की गहराई को कोई खतरा नहीं मानता… और जहां गरीब परिवार के सपने सबसे पहले डूबते हैं।

