सारण का मशरक इलाका। नवादा गांव की सुबह थी। 21 साल का सुंदरम कुमार, रोज की तरह चंवर की तरफ चला गया। वहां एक पोखर है, जो गांव के लोगों के लिए पीढ़ियों से रोजमर्रा की जगह है।

गांव की तस्वीर आज भी वैसी ही है — ईंट के मकान कुछ, कच्चे घर ज्यादा, और खेतों के बीच-बीच में पानी भरे पोखर। शहर के लोग जहां शौचालय में जाते हैं, गांव में अब भी बहुत लोग खेत, नदी और पोखरों के किनारे जाते हैं। ये सिर्फ आदत नहीं, कई बार मजबूरी भी है।

सुंदरम भी इसी आदत और मजबूरी में उस सुबह वहां गया। लेकिन पैर फिसला, और वो गहरे पानी में चला गया। पानी शांत था, लेकिन उसमें मौत छुपी थी।


गांव वाले दौड़े, किसी ने लाठी बढ़ाई, किसी ने कपड़ा। पर पानी ने अपना काम कर दिया। अस्पताल ले जाने तक सुंदरम जा चुका था।
सुंदरम अविवाहित था, पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा। उसकी मौत के साथ घर का सबसे चहकता कोना खाली हो गया।
पुलिस आई, शव पोस्टमार्टम के लिए गया। लेकिन गांव में जो बचा, वो है एक सन्नाटा और वो पोखर, जहां हर दिन लोग जाते हैं… और अब सोचते हैं — कहीं अगला नंबर मेरा न हो।
