124 साल की उम्र… जी हाँ, एक सौ चौबीस साल।
ये कोई पुरानी कथा नहीं, न ही किसी पंचांग में दर्ज कोई अद्भुत घटना। ये है चुनाव आयोग के रिकार्ड का कमाल—जहाँ एक महिला, मीनता देवी, अचानक भारत की सबसे उम्रदराज़ मतदाता घोषित हो गई हैं।

छपरा के प्रभुनाथ नगर में रहने वाली, मूल रूप से सिवान की निवासी मीनता देवी के वोटर आईडी में उम्र दर्ज है—124 साल। सोचिए, जब गांधी जी का भी जन्म नहीं हुआ था, तब से लेकर आज तक… मीनता देवी ज़िंदा हैं—चुनाव आयोग के हिसाब से।

लेकिन असलियत?
मीनता देवी हँसते-हँसते थक चुकी हैं और अब कह रही हैं—”भई, ये मज़ाक छोड़िए, मेरी सही उम्र लिख दीजिए।”
पर ये मज़ाक अब सिर्फ मज़ाक नहीं रहा। कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा ने इसे चुनावी मंच पर उठा लिया। टीवी डिबेट में चिल्लाने लगे लोग—”ये देखिए, व्यवस्था की पोल!”
और इसी बीच, मीनता देवी के घर के बाहर जुटने लगीं नज़रें, मोबाइल कैमरे, सवाल… जैसे वो किसी घोटाले की मास्टरमाइंड हों।

वो कहती हैं—”मैं तो एक घरेलू महिला हूं, राजनीति में किसी का मोहरा नहीं बनना चाहती।”
पर राजनीति में मोहरा बनना कई बार आपकी मर्ज़ी पर नहीं, दूसरों की ज़रूरत पर तय होता है।

इस ‘124 साल’ की गलती ने उनके परिवार को भी बेचैन कर दिया है। मोहल्ले में फुसफुसाहटें हैं—”अरे, देखो-देखो, यही वो हैं…”
पति, बच्चे, ससुरालजन—सबको मानसिक तनाव। और सवाल यह कि—
जब एक महिला की उम्र एक सदी से भी ज़्यादा कर दी जाए और वो सालों बाद भी किसी अफ़सर की टेबल पर सुधर न पाए, तो इस लोकतंत्र की मशीनरी में बाकी कितनी गलतियाँ दबी पड़ी होंगी?

मीनता देवी अब बस इतना चाहती हैं—चुनाव आयोग उनकी उम्र सही कर दे। और बाकी हम सब… अगली बार जब किसी आईडी कार्ड पर तारीख़ देखें, तो सोचें—क्या सच में ये सही है, या बस, ये भी कागज़ी सच्चाई है?
