सुबह का वक्त था, गांव की खामोशी के बीच अफजल अंसारी अपने घर से निकले। रोज़मर्रा की तरह शौच के लिए। गांव है काटोखा शेरपुर पंचायत और थाना मांझी।
गांव की गलियों से होते हुए वो नदी किनारे पहुंचे। लेकिन इस बार वो लौटकर घर नहीं आए।
कहा जाता है कि फिसलकर नदी में गिर गए। नदी ने उन्हें अपनी लहरों में समेट लिया।

गांव वालों ने खोज की। गोताखोर उतरे।
शव निकाला गया। अफजल अंसारी अब सिर्फ़ एक नाम रह गए।
पीछे रह गए उनके दो छोटे-छोटे बच्चे। एक परिवार, जो अचानक बेसहारा हो गया।

पुलिस मामले की जांच कर रही है। पोस्टमार्टम होगा। कागज़ी कार्रवाई होगी।
लेकिन सवाल वही पुराना है, जो हर बार टकराता है —
हर घर शौचालय का सपना आखिर कहां है?
सालों से योजनाएँ आईं। करोड़ों रुपये खर्च हुए। कागज़ पर गांव “ओपन डिफिकेशन फ्री” दिखा।

लेकिन ज़मीन पर?
आज भी लोग नदी किनारे, पोखरा किनारे जाने को मजबूर हैं।
ये मौत सिर्फ एक हादसा नहीं है,
ये उस सिस्टम पर एक सवाल है जो हर गांव, हर घर में शौचालय का वादा करता है,
मगर अफजल अंसारी जैसे गरीब आदमी की जान चली जाती है।



