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आजादी के हीरो रियल नायक महेंद्र मिसिर की अनसंग कहानी जिनका जन्म 16 मार्च 1865 में हुआ था ।छपरा जिला के जलालपुर के मिश्रवलिया गांव के रहने वाले थे,
वह देश के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पूर्वी धुन के जनक के साथ-साथ सच्चे देशभक्त भी थे।
अपने जवानी के समय में महेंद्र मिसिर ने अंग्रेजों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया था।
ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने के लिए उस समय पैसों की जरूरत पड़ती थी। उन्होंने सोचा मैं स्वतंत्रता सेनानियों को वित्तीय सहायता नोट छाप कर करूंगा।
और उन्होंने वहां के स्वतंत्रता सेनानियो को देश के आजादी में भाग लेने के लिए प्रेरित किया ये बात उस समय की है जब तकरीबन 1910 या 1912 का साल रहा होगा।

उन्होंने नकली नोट छाप कर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे उनके बारे में कहा जाता था कि दिन में वो अपने पूर्वी धुन के राग में व्यस्त रहते थे और शाम में उनके घर चौपाल लगते थे। क्योंकि वह जमींदार घर से आते थे उनके घर पर गाए ,घोड़े सब कुछ मौजूद था।
कहां जाता है कि वह आधी रात को नोट छापते थे उनके घर के अंदर प्रांगण में शिवजी का मंदिर था और सुबह होने से पहले उन सारे नोटों का वितरण स्वतंत्रता सेनानीयों के हाथों हो जाता था जिसका इस्तेमाल देश के आजादी में किया जाता था, इस तरह वह स्वतंत्रता सेनानी की मदद करते थे।
यह बात जब अंग्रेजों को मालूम चली की कहीं ना कहीं छपरा के उसी गांव से नकली नोट छपता है तब एक अंग्रेज का बड़ा अधिकारी गुप्तचर बनकर उनके घर घोड़े का लीद काढ़ने का काम करने के लिए गया। उस गुप्तचर को भी

एक साल लग गए कि महेंद्र मिसिर नकली नोट छापते हैं तब जाकर उसे पुख्ता सबूत मिल गया। महेंद्र मिसिर को गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेजी फौज एवम उनके कैप्टन आ गए। अंग्रेज फौज के कैप्टन से बोले कि मेरी पत्नी मकई का भात बना रही है उसको खा लूं और आप भी खा ले उसके बाद मुझे लेकर चलना तब तक वह अपने पत्नी से बोले कि उसी चूल्हे में सब नोटों को जला देना उसके बाद जब अंग्रेज मकई का भात और दूध खा लिया तो वह नोट देखने गया तो वहां नोट नहीं मिला हालांकि अंग्रेज गिरफ्तार करके बक्सर जेल ले गया। यह नायक 1924 में इस दुनिया को अलविदा कह गया।

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